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Chandrasheela

सैरकर दुनिया की गाफ़िल, जिन्दगानी फिर कहाँ जिन्दगानी गर रही तोह, नौजवानी फिर कहाँ। - ख़्वाजा मीर दर्द घुमक्कड़ी मानव जीवन का सदा से अभिन्न अंग रहा है, आज भी तमाम घुमक्कड़ हैं जिन्हें दुनिया जमाने से कोई सरोकार नहीं, किसी बात की चिंता नहीं और अगर है भी तो केवल इस बात की कि आगे कहाँ जाया जाएगा। वही उनकी भक्ति है वही उसका भगवान है, यही उसके भगवान कि पुजा अर्चना इबादत सबकुछ यही है। दुनिया में तमाम महान घुमक्कड़ हुए, बल्कि सभी महान इन्सानों के अंदर एक घुमक्कड़ी कि जिज्ञासा होती ही है, मैं गलत हो सकता हूँ, पर अब तक का मेरा अनुभव यही कहता है कि जो जितना घूमा है उसने उतना ज्ञान प्राप्त किया है और उससे कहीं ज्यादा अपना ज्ञान बांटा है। हम यहाँ उनमे से किसी का ज़िक्र नहीं कर रहे हैं, यहाँ ज़िक्र है तो कुछ दोस्तों का जो घूमने निकले। विमल,आशीष, बंडुल, बरनवाल, रस्तोगी, भास्कर और मैं। भले ही आज के यातायात के साधनों कि सुगमता ने घुमक्कड़ी को सहज बना दिया है  fir bhi  ये kaam इतना आसान है नहीं, सभी घूमना चाहते हैं पर अगर स्तटिस्टिकल (statistical) अध्ययन किया जाए तोह 'घूमने का सोचने'