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साहब का बिज़नेस प्लान

 बिज़नेस प्लान भरी जवानी में  सरकारी मुलाजिम हुए साहब को कई बरस हो चुके थे, जनाब सरकारी मुलाजिम रह कर उकता गए थे,और उकताते भी क्यूं न जब जवानी की सीढ़ियों  पर पहुचे भी नही थे कि यु. पी. एस. सी. की कनिष्ठ सेवा में अधिकारी हो गये वो भी पहले ही प्रयास में। बड़े दिनों से लहर चल रही थी एंटरप्रेन्योरशिप की। आस पास के लोगों को देख कर भी मन में बड़ा उमंग होता रहा। कुछ दिन पहले ही दफ्तर में, बड़े बाबू बेटे के नाम पर बड़ी बर्गर कंपनी की फ्रेंचाइजी मिलने की मिठाई खिला गए थे। मध्याह्न भोजन में वहीं से खाना भी आ रहा था। दफ़्तरी की फोटोकॉपी की दुकान पर किसी को कहते सुना था कि बड़े साहब भी अपनी पत्नी के नाम से कोई बड़ा स्पा खोल लिए हैं। अब साहब को सभी साथियों के चेहरों पर सुकून दिखने लगा था। नौकरी में दिन ब दिन बढ़ती तकलीफ़ के बीच सभी ने एक वैकल्पिक व्यवस्था कर ली थी। सभी लगभग यही सोच रहे थे कि इस नौकरी के भरोसे रहे तोह न सुकून से नौकरी कर पाएंगे न जीवन में आगे ही कुछ कर सकेंगे। बड़े दिनों तक विचार मग्न रहे, पत्नी से भी बातचीत की। कुछ मित्रों से बात करके निष्कर्ष निकाला कि व्यापार करने के लिए बड़ी सारी

अंकल की दुकान

आज अंकल की दुकान से गुजरा । दुकान का शटर बंद मिला, बहुत दिनों तक ढूँढता रहा पर अंकल से भेंट भी नहीं हुई। कुछ जानकारों से मालूम हुआ की अंकल ने दुकान बंद कर दी है और कहीं और चले गए हैं। अंदर से बड़ी मायूसी महसूस हुई, वो कोई मामूली दुकान नहीं थी वो थी हमारे अंकल की दुकान वैसे तो वो कभी भी महसूस नहीं कराते थे की वो कोई अंकल हैं। हमेशा ही बड़ी आत्मीयता से मिलते थे, जैसे कोई बहोत पुराना याराना हो। जितने अच्छे अंकल उनसे कहीं ज्यादा प्यारी उनकी दुकान। अमा अंकल की क्या वो तो हमारी ही दुकान थी वहाँ रहते-रहते कुछ इतना ज्यादा समय बीत जाता था की कभी मालूम ही नहीं होता था की ये अंकल की दुकान है की हमारी । वहीं से हमारी शुरुआत होती थी। जब कभी भी दोस्तों से मिलना होता था तो दिमाग का जीपीएस एक ही जगह टैग होता - अंकल की दुकान । वहीं  दुकान के सामने शकुंभरी कॉम्प्लेक्स की रेलिंग पर बैठे बैठे दुनिया भर मे घूमने के प्लान बनते थे और बीच बीच मे कोई न कोई भूखा कुक्कड टपक पड़ता था और मोमो, मैगी कोल्डड्रिंक चाय के दौर चला करते थे । सर्दियों मे कॉफी भी बहुत आजमाई जाती थी। उसी दुकान के सामने उस रेलिंग पर जाने क