साहब का बिज़नेस प्लान


 बिज़नेस प्लान

भरी जवानी में  सरकारी मुलाजिम हुए साहब को कई बरस हो चुके थे, जनाब सरकारी मुलाजिम रह कर उकता गए थे,और उकताते भी क्यूं न जब जवानी की सीढ़ियों  पर पहुचे भी नही थे कि यु. पी. एस. सी. की कनिष्ठ सेवा में अधिकारी हो गये वो भी पहले ही प्रयास में।

बड़े दिनों से लहर चल रही थी एंटरप्रेन्योरशिप की। आस पास के लोगों को देख कर भी मन में बड़ा उमंग होता रहा। कुछ दिन पहले ही दफ्तर में, बड़े बाबू बेटे के नाम पर बड़ी बर्गर कंपनी की फ्रेंचाइजी मिलने की मिठाई खिला गए थे। मध्याह्न भोजन में वहीं से खाना भी आ रहा था। दफ़्तरी की फोटोकॉपी की दुकान पर किसी को कहते सुना था कि बड़े साहब भी अपनी पत्नी के नाम से कोई बड़ा स्पा खोल लिए हैं।
अब साहब को सभी साथियों के चेहरों पर सुकून दिखने लगा था। नौकरी में दिन ब दिन बढ़ती तकलीफ़ के बीच सभी ने एक वैकल्पिक व्यवस्था कर ली थी। सभी लगभग यही सोच रहे थे कि इस नौकरी के भरोसे रहे तोह न सुकून से नौकरी कर पाएंगे न जीवन में आगे ही कुछ कर सकेंगे।
बड़े दिनों तक विचार मग्न रहे, पत्नी से भी बातचीत की।
कुछ मित्रों से बात करके निष्कर्ष निकाला कि व्यापार करने के लिए बड़ी सारी चीजों पर ध्यान देना पड़ता है। साहब हिसाब और किताब के पक्के थे ही, इंटरनेट पर दो हफ्ते तक उठा पटक करते रहे। दूरस्थ माध्यम से एम बी ए डिग्री हासिल करने के लिए जो किताबें बिना पढ़े पास हो गए थे उन्हें निकाल कर चट्ट कर गए। उन्हीं में से एक चिराग का जिन्न निकाला - बिज़नेस प्लान।

इसमे सब कुछ था, शुरुआत के पहले दिन से कभी न खत्म होने वाले बिज़नेस की सारी बातें बारीकियों से लिखी हुई थीं इसमे, कहाँ से शुरू करें, कैसे फण्ड जुटाएं, रिस्क प्रबंधन, कार्मिक प्रबंधन, सोशल मीडिया स्ट्रेटेजी फलां ढेमकां सब कुछ।
साहब को बिज़नेस प्लान लिख लेने के बाद ऐसा मालूम हुआ कि बस तरकश के सारे तीर तैयार हो गए और रण छेत्र में जा कर तीर चलाने भर की देर भर है।
Business प्लान का विज़न वैसे लिखना तोह प्रारम्भ में ही था पर उसे इन्होंने अंत के लिए बचा रखा था। आज रात को बड़े मुस्कुराते हुए लिख रहे थे, पत्नी भी आज पति को बड़े दिनों बाद खुश देख रही थी।

दूध का ग्लास पकड़ाते हुए पूछा, ‘क्युं जी आज खत्म हुआ तुम्हारा बिज़नेस?’

बड़े गंभीर हो बोले ‘अरे, पगला गयी हो क्या ? अभी तोह बस शुरू ही हुआ है और तुम बंद करने की बात कर रही हो’

पत्नि उनकी गंभीरता से समझ गयीं की साहब मजाक के मूड में नही हैं, फिर उनका मन अच्छा करने के लिए उनके बिज़नेस के बारे में सारी बातें पूछने लगीं। साहब भी अपने बिज़नेस प्लान को व्यापारिक गतिविधियों के प्रकाण्ड विद्वान सा बांचने लगे।

‘जानती हो, ऐसा नही है कि इसमें तुम भी खाली रहोगी, कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिल्टी में तुम्हें भी लगा दूंगा। इसमे कंपनी समाज के लिए कुछ करती है, यहां तुम अपना स्कूल वाला काम कर लेना स्कूल के नाम पर अच्छी इमेज भी बनेगी और तुम्हारा भी गाड़ी, घर का खर्च हो जाएगा’

पति की बातें, थीं तोह समझ के बाहर पर उनकी खुशी देख कर मुस्कुरा देने भर का काम ही इस समय सबसे सटीक जान पड़ा।

अब अपने बिज़नेस प्लान को अपने बिज़नेस पार्टनर्स से साझा करके उसमें कुछ आमूल चूल बदलाव भी कर लिए गए।
फंड्स की जरूरत को पूरा कर लिया गया था, एफ डी तुड़वा कर नए खुले करंट एकाउंट में जमा करा दिए थे।
बिज़नेस प्लान के हिसाब से मार्किट कैप्चर करने का काम फ़ूड आउटलेट्स पर आसानी से हो सकता था तोह बड़े से बिज़नेस प्लान में पहला काम यही तय हुआ कि एक दुकान ढूंढ कर एक फ़ूड आउटलेट खोल लिया जाए।
दीवाली पर दो दिन की छुट्टी बढ़वा कर साहब पूरे शहर में प्राइम लोकेशन ढूंढने लगे। चार प्राइम लोकेशन तय हुए, जिसमे पहली जगह पर जाने की बात फिक्स हो गयी।

अगली सुबह ही साहब अपने पार्टनर्स को लेकर अपनी दुकान ढूंढने निकल पड़े, कई लोगों से मिले पर कोई उन्हें पहचानता नही था तोह दुकान देने को तैयार न हुआ।
दोपहर तक थकावट महसूस होने लगी थी।
यकायक मालूम होने लगा कि जैसे व्यर्थ ही खुद को जवां समझ रहे थे। Age is just a number वाला जुमला अब इनके मन मे कुछ और ही एहसास दे रहा था।
अचानक से उठ खड़े हुए चाय के पैसे दिए और दुकान वाले से ही झल्ला पड़े,
‘कैसी जगह है यार यहां एक दुकान देने को कोई तैयार नही है, पिछड़ा हुआ एरिया है और सब कहते हैं कि ग्रोइंग मार्किट है’ कह कर भेह! भेह! कहते हुए वापिस आकर सड़क पर  खड़े हो गए।
चाय वाले का छेत्रवाद जाग उठा, उठ कर केतली लिए बाहर आया। साहब थोड़ा ठिठक गए, छेत्रवाद से अनभिज्ञ रहते हुए पिछली बात कह तोह दी थी पछतावा अब हो रहा था। चाय वाले ने अपनी मर्यादा से बाहर आते हुए चार बातें कह डाली थीं।
पार्टनर्स ने बीच बचाव किया और शांत कर बैठाया।
साहब को हाथ मे बिज़नेस प्लान दिखा, जिसपे स्वाट (SWOT) एनालिसिस में लिखा था कि समस्या आएगी पर डरे नहीं धैर्यवान बने रहें। साहब फिर से बिजनेसमैन मोड में आन पड़े।
चाय वाले को बुलाकर कहने लगे ‘अरे यार हम तोह बस चेक कर रहे थे, तुम जैसे जज्बाती आदमी तोह बड़े अच्छे होते हैं हमारे आफिस में चाय तुम्हारे यहां से ही जाया करेगी।’
चाय वाले को ‘आफिस में चाय’ एक नई बिज़नेस opportunity समझ आयी। खुश होकर कहने लगा, आप लोग ठाकुर साहब के यहां गए थे? दस दुकाने निकली हैं सड़क पर मकान बनवाये हैं, डेढ़ बिस्वा एकदम लबे रोड है किराया भी ठीके ठाक होगा, देख लीजिए ठीक से बतियाएंगे तोह मिल जाएगा।
‘ठीक से बतियाएंगे??’साहब के मन मे ये बात कौंध गयी।

‘क्या हम गवांर हैं जो बतिया नही पायेंगे?’

खैर, ये कौन सा बड़ा विद्वान है, जो हमें राय देगा ऐसे बहोत बातें आएंगी अनदेखा करने में ही भलाई है ऐसा सोच कर ठाकुर साहब का पता लिया और उनकी दुकान पर जा पहुचे।
उनके मित्र और बिज़नेस पार्टनर तिवारी जी जो सामाजिक जीवन मे अतिसक्रिय रहते हैं, उन्होंने ही यहां बात करना उचित समझा।

ठाकुर साहब नीचे लुंगी पहने पधार पड़े, बातचीत में बताने लगे कि क्या किराया और पगड़ी होती है दुकान लेने में, साथ ही कहने लगे कि अभी तोह खाली नही है और ऊपर भी बनेगा तोह आप ले नही पाएंगे।

साहब को ये बात अच्छी नही लगी। सोचने लगे कि ऐसा क्या है कि ले नही सकते?
खैर चाय वाले के साथ कटु अनुभव से सीखते हुए चुप रहना ही बेहतर समझा।
फिर कहने लगे की एक दुकान खाली हो सकती है जल्द ही।

तिवारी जी कहने लगे कि ठीक है, खाली होगा तोह बताइयेगा देखा जाएगा।
ठाकुर साहब ने त्योरियां चढ़ाईं जिससे यही प्रतीत हुआ मानो कह रहे हों कि दाम बता दिया मतलब ये नही की दे ही देंगे।
दाम तोह इस लिए बता दिया कि जागीर के ताल्लुकेदार हैं तोह जागीर की एहमियत तोह गिनानी ही थी।

ठाकुर साहब की नंगी छातियों पर लटकती सोने की सिकड़ी जो संभवतः बेटे की ससुराल से मिली थी छाती के घुंघराले बालों में पिरोते हुए पूछने लगे ‘कौन करेगा दुकान?’
तिवारी जी ने साहब की ओर इशारे से दिखाया।
ठाकुर साहब साहब की ओर देखते हुए अपनी मातृभाषा में पूछे, ‘कौन बिरादर हव?’
जातिवाद से अछूंण, साहब जवाब ही न दे सके।
तपाक से तिवारी जी बोले ‘अहीर, हउवन’
ठाकुर साहब अपनी सिकड़ी को छोड़ ठहाका मार कर हँसने लगे।
साहब की ओर देख कर बोले, ‘दूध मलाई बेचब इ दुकानवा में।’

साहब यूँ तो शांत प्रवित्ति के हैं पर अपने बिज़नेस प्लान को मुट्ठी में दबा कर बोले ‘ हां, बाकी तू जिन दिहा, भैंसिया क दु दिन क गोबर बेच के तोहार मकनवा न खरीद लेहिं।’
कह कर गाड़ी पे जा बैठे|



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