अंकल की दुकान

आज अंकल की दुकान से गुजरा । दुकान का शटर बंद मिला, बहुत दिनों तक ढूँढता रहा पर अंकल से भेंट भी नहीं हुई। कुछ जानकारों से मालूम हुआ की अंकल ने दुकान बंद कर दी है और कहीं और चले गए हैं।
अंदर से बड़ी मायूसी महसूस हुई, वो कोई मामूली दुकान नहीं थी वो थी हमारे अंकल की दुकान वैसे तो वो कभी भी महसूस नहीं कराते थे की वो कोई अंकल हैं। हमेशा ही बड़ी आत्मीयता से मिलते थे, जैसे कोई बहोत पुराना याराना हो।
जितने अच्छे अंकल उनसे कहीं ज्यादा प्यारी उनकी दुकान। अमा अंकल की क्या वो तो हमारी ही दुकान थी वहाँ रहते-रहते कुछ इतना ज्यादा समय बीत जाता था की कभी मालूम ही नहीं होता था की ये अंकल की दुकान है की हमारी ।
वहीं से हमारी शुरुआत होती थी। जब कभी भी दोस्तों से मिलना होता था तो दिमाग का जीपीएस एक ही जगह टैग होता - अंकल की दुकान । वहीं  दुकान के सामने शकुंभरी कॉम्प्लेक्स की रेलिंग पर बैठे बैठे दुनिया भर मे घूमने के प्लान बनते थे और बीच बीच मे कोई न कोई भूखा कुक्कड टपक पड़ता था और मोमो, मैगी कोल्डड्रिंक चाय के दौर चला करते थे । सर्दियों मे कॉफी भी बहुत आजमाई जाती थी। उसी दुकान के सामने उस रेलिंग पर जाने कितने मुद्दे सुलझाइए जाते थे। कभी नीलु दीप्ति से लड़ जाती थी कभी स्वीटी को डांट यहीं पड़ती थी कभी हम लोगों का मू फुल्ली फुल्ला भी यहीं से शुरू होता और लंका, बीएचयू, अस्सी घूमने के बाद यहीं आ कर खतम होता था । हमारे लिए तो ये बड़ी खास जगह हुआ ही करती थी शाकुंभरी कॉम्प्लेक्स की सारी क्लाससेस के लिए ये दुकान एक यादगार जरूर लेकर आती थी। यहाँ पढ़ने वाला हर स्टूडेंट कभी न कभी इस दुकान से गुजरता जरूर था और रुकता था और एक याद लेकर ही आगे बढ़ता था। यहाँ हर साल तमाम कहानियाँ  बनती थी। अंकल की दुकान ही हुआ करती थी जो इन कहानियों को बड़ी करीब से जानती थी और समझती भी थी। वहां कई कई घंटों तक बैठे उसका इंतजार हुआ करता था। यहीं से दोस्तों के साथ इडली vada सांभर खाने का पिलान बनता था, नए सिनेमा का रिव्यु खुद अंकल ही दिया करते थे, और ख़राब ड्रेसिंग सेंस पर अपनी बेबाक राय देना कभी न भूलते थे खुद को भी टीपटाप रखते थे।  GK कि पढ़ाई क्लासेस मे कम इस दुकान पर ज्यादा हुआ करती थी। हर काम के लिए जाने क्यूँ यहीं पर एक सोल्यूशंस दिखता था। वो दुकान केवल एक दुकान न थी  वो हमारी दोस्ती की कार्य शाला थी। आज उसका बंद शटर देख कर लगा जैसे कोई जिगरी यार रूठ कर कहीं चला गया हो. उस दूकान के साथ हम सबकी तमाम यादें जुडी हुई हैं इसीलिए आज ये बातें साझा करना जरुरत कम मज़बूरी ज्यादा लगी।  

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