गुस्ताख़ी माफ! क़बीर एक नाम के तौर पर जाना जाने वाला शब्द है, मेरी समझ से यह नाम धर्मनिरपेक्ष है जो लगभग हर समुदाय में रखा जाता है। इसके अतिरिक्त क़बीर शब्द सन्त क़बीर दास जी के कारण बहुत प्रचलित हैं जो हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध संत और कवि थे। इसके अतिरिक्त सम्मानित व्यक्ति को भी क़बीर की संज्ञा दी जाती है व भारत में मनाए जाने वाले एक त्यौहार होली में गाया जाने वाला एक गीत भी "क़बीर" नाम से जाना जाता है परन्तु विशेषकर यह शब्द केवल संत क़बीर जी के कारण प्रचलित है जिन्होंने 15 वीं सदी में अनेकों दोहे लिखे जिनका हिंदी साहित्य पर बहुत अधिक प्रभाव है। अन्य अर्थ : महान: वह व्यक्ति जिसने अपने कार्य के कारण महानता को हासिल किया है क़बीर कहलाता है। बुजुर्ग: एक आयु के बाद वृद्धावस्था को भी क़बीर शब्द से सम्बोधित किया जाता है। सम्मानीय: वह व्यक्ति जिसे समाज मे सम्मान मिला है व जो सम्मानीय होता है क़बीर कहलाता है। पर ये सब लिखने के पीछे वजह क्या है? दरअसल हमारे कुल के चश्मोंचिराग़ का जन्म हुआ जिनका नाम रखा क़बीर(क नुक्ते के साथ), बच्चा अभी एक दिन का भी नहीं था पर नामकरण एक अरसा
बस तुमसे इतना ही कहना चाहता हूं कि हाँ, तुमसे मुहब्बत है। कभी कम कभी ज्यादा रहा है एहसास इसका पर ये तोह तय है कि तुमसे मुहब्बत है। कई बार कोशिशें किं की तुम्हें बात सकूँ कि कितनी तुमसे मुहब्बत है। कई दफ़े नाराज़गी के दौर हुए, पर कभी नाराज़ ज्यादा रह न सका, तुम्हें खोने का ज़िक्र भी नकार दिया, क्यूंकि तुमसे मुहब्बत है। कई बातें तुमसे कहने की हुईं, पर कभी कह न सके, आज भी कोशिश की थी पर रह ही गए, सोचता हूँ कि ऐसा क्यूँ है, शायद इसलिए कि तुमसे मुहब्बत है। ज़माने भर से छुपते छुपाते रहे, बेमतलब ही हम शर्माते रहे, आज भी कोई ज्यादा न हुआ है, बस खुमारी में कुछ उन्स हुआ है, अब किससे कितना छुपाते फिरें लो आज कह देते हैं, की तुमसे मुहब्बत है। बड़ी बड़ी बातें कहने को जी चाहता है, कुछ कर गुज़र जाने को जी चाहता है, ये सब तुमसे बताने को जी चाहता है, इसीलिए की तुमसे मुहब्बत है। हज़ार शिकवे तुम्हारे, हज़ारों गलतियां मेरी, तमाम जुर्ररतें तुम्हारी, कई अल्फ़ाज़ भी मेरे, दिल ए नादां को मनाते, उसे बस इतना बताते, क्यों पाली इतनी फ़ज़ीहत है, क्योंन कहते कि मुहब्बत है। आज बस इतना है कहना, तुम्हारी हर खुशी हर बात, तुम्हारी
सैरकर दुनिया की गाफ़िल, जिन्दगानी फिर कहाँ जिन्दगानी गर रही तोह, नौजवानी फिर कहाँ। - ख़्वाजा मीर दर्द घुमक्कड़ी मानव जीवन का सदा से अभिन्न अंग रहा है, आज भी तमाम घुमक्कड़ हैं जिन्हें दुनिया जमाने से कोई सरोकार नहीं, किसी बात की चिंता नहीं और अगर है भी तो केवल इस बात की कि आगे कहाँ जाया जाएगा। वही उनकी भक्ति है वही उसका भगवान है, यही उसके भगवान कि पुजा अर्चना इबादत सबकुछ यही है। दुनिया में तमाम महान घुमक्कड़ हुए, बल्कि सभी महान इन्सानों के अंदर एक घुमक्कड़ी कि जिज्ञासा होती ही है, मैं गलत हो सकता हूँ, पर अब तक का मेरा अनुभव यही कहता है कि जो जितना घूमा है उसने उतना ज्ञान प्राप्त किया है और उससे कहीं ज्यादा अपना ज्ञान बांटा है। हम यहाँ उनमे से किसी का ज़िक्र नहीं कर रहे हैं, यहाँ ज़िक्र है तो कुछ दोस्तों का जो घूमने निकले। विमल,आशीष, बंडुल, बरनवाल, रस्तोगी, भास्कर और मैं। भले ही आज के यातायात के साधनों कि सुगमता ने घुमक्कड़ी को सहज बना दिया है fir bhi ये kaam इतना आसान है नहीं, सभी घूमना चाहते हैं पर अगर स्तटिस्टिकल (statistical) अध्ययन किया जाए तोह 'घूमने का सोचने'
Comments
Post a Comment
thanks for your comment. I'll be appreciating your comment.